कहाँ तो तय था चरागां हर एक घर के लिए, कहाँ चराग मयस्सर नहीं
शहर के लिए.
कहाँ तो
तय था चरागां हर एक घर के लिए, कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए.
यहाँ
दरख्तों के साए में धूप लगती है, चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए...
यदि आपने
हिन्दुस्तान को गहराई से जानने की कोशिश की है, यहाँ के सामान्य जनमानस की ज़िंदगियों से वाकिफ हैं,
यहाँ की गलियों, मुहल्लों, शहरों और खासकर गाँवों को दिल से महसूस किया है व इनकी दशा और दिशा पर
चिंतन किया है तो जन कवि दुष्यंत कुमार की ये उपर्युक्त पंक्तियाँ आपके भावों
को शब्दों के जरिये बयान करने का एक जरिया
अवश्य ही हो सकती हैं.
लगभग
पांच हजार साल के ज्ञात इतिहास वाला यह देश खुद में बहुत से राज और इतिहास समेटे
हुए है. बहुत से आक्रांता आये, हमारे मुल्क को लूटा, यहाँ के
धरोहर नष्ट किये, राज किया और जाते रहे. विभिन्न मत, पंथ और संप्रदाय को मानने वाले लोग आये और यहाँ पर अपनी सभ्यता और संस्कृति
से विविधता भरने का काम किया. हम वर्षों
तक गुलाम रहे, अपनी आज़ादी की खातिर लड़ाई भी लड़ी,
आज़ाद भी हुए, अपना संविधान भी बनाया जिसकी
परिकल्पना जनता द्वारा जनता के लिए पर
आधारित है. संविधान ने हमें समानता का
अधिकार दिया, मौलिक अधिकार दिए आदि.
लेकिन क्या
सचमुच आज हिन्दुस्तान का हर नागरिक समान जीवन यापन कर रहा है ! सबके
अधिकारों की रक्षा हो रही है !
हिन्दुस्तान
के विषय में बात निकलेगी तो दूर तक जायेगी, इसलिए आज बात हिन्दुस्तान के समक्ष खड़े ज्वलंत
प्रश्नो पर ही करूँगा -
मुल्क की
आज़ादी के ७० वर्षों के बाद भी हमारा देश कई सारी सामाजिक और राजनैतिक खामियों से
जूझ रहा है. कोशिश करूँगा कि कुछ मुख्य मुद्दों पर बात रख पाऊं.
गरीबी
हमारे देश की मुख्य समस्या रही है. पूरी
आबादी का एक बड़ा तबका मूल-भूत सुविधाओं से
भी वंचित हैं. उन्हें रोटी, कपड़ा , मकान, शुद्ध पानी तक आसानी से उपलब्ध नहीं है. सरकार
ने गरीबी की जो रेखा बनायी है वो हास्यास्पद है और देश की स्थिति को बयान करने लिए
काफी है. हिन्दुस्तान की सरकार का कहना है
कि गाँवों में जो व्यक्ति हर रोज ३२ रुपये कमा लेता है वो गरीबी रेखा से ऊपर है ,
ऐसे ही शहर में रहने वाले नागरिकों के लिए यह आंकड़ा ४७ रुपये का
है। आप अंदाजा लगा सकते हैं की देश में
कितनी असमानता है.
गरीबी और अमीरी की खायी इतनी ज्यादा है की इसे पाटने को सोचना
भी अपने आप में एक साहस का कार्य है.
सरकारें गरीबी पर काबू पाने के लिए पीडीएस - जिसमें
गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों को ३० किलो चावल और 15 किलो
गेहूं प्रति महीने देने का प्रावधान है, महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना जिसमें कि ग्रामीण बेरोजगार गरीब
लोगों को साल भर में १०० दिनों का रोजगार मुहैया कराने का प्रावधान है, इसके अलावा स्वास्थ्य बीमा योजना और अन्य योजनाएं अस्तित्व में लेकर आयीं
किन्तु इनका सही से क्रियान्वयन नहीं हो पाने के कारण गरीब अभी भी गरीब ही है।
इसके बावजूद भी कभी कोई नेता जी बयान दे देते हैं कि गरीबी एक मानसिक अवस्था है!
कौन से सपने की दुनिया में जी रहे हो भाई... तुम्हारी मानसिक अवस्था तो ठीक है न ?
गरीबी के
अलावा साक्षरता हमारे देश की एक बहुत बड़ी समस्या है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 287 लाख युवा
साक्षर नहीं हैं. शिक्षा किसी भी
देश के विकास में सबसे ऊपर स्थान रखती है किन्तु ऐसा लगता है कि हमारे यहाँ इस बात को लेकर कोई सीरियस नहीं है।
पुरुष हो या स्त्री दोनों को समान और बेहतर
शिक्षा पाने का अधिकार है किन्तु सरकार के रहनुमाओं की ढिलाई और घूसखोरी की
वजह से एक बड़ा तबका आज भी बेहतर शिक्षा से वंचित है.
सर्व
शिक्षा अभियान ठीक से लागू नहीं हो पा रहा है, मिड डे मील व्यवस्था का बुरा हाल है. इस दिशा में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है.
इसके
अलावा बाल विवाह, घरेलु हिंसा , महिला सुरक्षा, भ्रूण
हत्या, आदि तमाम ऐसी बुराईयां हैं जो हमारे समाज को बुरी तरह
से जकड़े हुए हैं. इन बुराइयों से
मुक्ति के लिए सबको तसल्ली से सोचना होगा. देश के हर एक जिम्मेदार लोगों की
ये ज़िम्मेदारी बनती है की वो आगे आएं और देश की बेहतरी के लिए कुछ काम करें. सामाजिक बुराईयों पर तो विजय प्राप्त करनी है,
साथ ही राजनैतिक बुराईयों पर भी विजय प्राप्त करनी है।
जैसे - राजनीति में
अशिक्षित लोगों के जाने पर प्रतिबन्ध लगाना, जिनपर
गुंडागर्दी, रेप आदि जघन्य अपराधों के आरोप हैं- ऐसे लोगों
पर प्रतिबन्ध लगाना, राजनीतिक पार्टियों को अपने चंदे की राशि को ट्रांसपैरेंट
बनाना आदि.
देश में
सामाजिक और राजनैतिक बुराइओं को ख़त्म करने के लिए एक सधे हुए अभियान की आवश्यकता
है. सबके जिगर में एक अलख जगाने की
आवश्यकता है और इस बात की ज़रूरत है की समाज और सरकार मिलकर इन समस्याओं से लड़े और
जीतें.
बहुत हो
गया. इस स्थिति को वर्णित करने के लिए
दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ हाजिर कर रहा हूँ -
हो गयी
है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.
आज यह
दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये
बुनियाद हिलनी चाहिए.
मेरे
सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए.
समस्या
बहुत बड़ी है, इसपर विजय प्राप्त करने के लिए विकल्प रहित संकल्प की आवश्यकता है,
अखंड-प्रखंड पुरुषार्थ की आवश्यकता है लेकिन हिन्दुस्तान को बनाने
के लिए करना तो पड़ेगा.
अंत में
दुष्यंत कुमार की ही पंक्तियों में आप सबको ऊर्जापुंज समेटे लाइने भेट कर रहा हूँ -
कौन कहता
है की आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर
तो तबीयत से उछालो यारों..



