हंगेरियन युवक केरोली के संघर्ष की अनकही दास्तान


ये कहानी है एक ऐसे इंसान की जिसने इस दुनिया के सामने ये मिसाल पेश किया कि दिल में कुछ कर गुजरने का जुनून, सही दिशा में निरंतर प्रयास करने की क्षमता और खुद पर विश्वास हो तो इंसान को महान बनने से कोई नहीं रोक सकता. मैं बात कर रहा हूँ हंगेरियन आर्मी के एक साहसी युवक की जिसने  एक सपना पाला और बखूबी उस सपने को जिया भी.28 साल के इस युवक का सपना था कि ये इस दुनिया का बेस्ट पिस्टल शूटर बने. युवक का नाम था केरोली.
केरोली
केरोली शूटिंग में बहुत सी चैंपियनशिप्स का विजेता था. 1939 में शूटिंग की नेशनल चैम्पियनशिप होने वाली थी और केरोली इस प्रतियोगिता के लिए दिन रात मेहनत कर रहा था. इसी बीच केरोली के सपनों पर चोट करने वाला एक हादसा हो गया. इस साहसी युवक के राइट हैंड में हैंड ग्रेनेड फट गया किन्तु केरोली का  खुद पर विश्वास इतना कमजोर नहीं था जो ऐसे हादसों से हिल जाए. तकरबीन एक महीने हॉस्पिटल में रहने के बाद ये साहसी युवक पुनः अपनी तैयारियों में जुट गया. केरोली के पास अब सिर्फ एक हाथ था, उसका लेफ्ट हैंड जो उसका बेस्ट हैंड नहीं था. फिर भी ऐसे जज़्बे को सलाम जिसके सपने ऐसे हादसों से मरते नहीं बल्की उनमें नयी उमंग, नयी ऊर्जा और जीवंत बने रहने की खातिर आवश्यक संजीवनी का संचार निरंतर बना रहता है.
केरोली किसी की भी परवाह किए बगैर निरंतर अभ्यास करता रहा और खुद को नेशनल चैंपियनशिप की खातिर तैयार करता रहा. समय आ गया था. केरोली जब 1939 की नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने गया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए. कुछ को तो ये लगा कि केरोली अन्य प्रतियोगियों का उत्साह बढ़ाने और प्रतियोगिता का आनंद लेने आया है. पर जल्दी ही केरोली ने साफ कर दिया कि वो उनका हौसला बढ़ाने नहीं बल्की उनसे कंपीट करने आया है. प्रतियोगिता प्रारम्भ हुयी.जितने  भी प्रतियोगी थे सभी अपने बेस्ट हैंड से कंपीट कर रहे थे, हंगेरियन युवक अपना बेस्ट हैंड खो चुका था, उसने अपने ओन्ली हैंड से कंपीट किया. चैम्पियनशिप समाप्त हुयी. विजेता बना हंगेरियन आर्मी का साहसी जवान केरोली.
केरोली यहीं नहीं रुका. सपना बड़ा था,उम्मीद बड़ी थी, आत्मविश्वास बड़ा था और कुछ कर गुजरने का जुनून रग- रग में लहू बनकर दौड़ रहा था.
केरोली ने अपना सारा ध्यान 1940 में होने वाली ओलंपिक गेम्स पर केंद्रित कर दिया किन्तु वर्ल्ड वार की वजह से इस साल होने वाले ओलंपिक गेम्स कैंसिल कार दिये गए. केरोली ने हार नहीं मानी. उसने अपना पूरा ध्यान 1944 में होने वाले ओलंपिक गेम्स पर केंद्रित कर दिया दुर्भाग्यवश इस बार भी वर्ल्ड वार केरोली की राहों में रोड़ा साबित हुआ. केरोली का जिगर कभी न टूटने वाला जिगर था. कहते हैं जो लोग अपनी राहें खुद बनाते हैं उनको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता. उसने इंतज़ार किया. 1948 में होने वाले ओलंपिक गेम्स में अपने ओन्ली हैंड से कंपीट किया और विजेता बना. केरोली का विजय रथ यहीं नहीं थमा बल्कि 1952 के ओलंपिक गेम्स में उच्च स्तरीय प्रदर्शन करते हुये ये साहसी युवक दुबारा विजेता बना और ओलंपिक में शूटिंग की प्रतियोगिता में सर्वप्रथम लगातार दो बार स्वर्ण पदक विजेता बन विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया. केरोली का सपना अब हकीकत बन चुका था. केरोली का जीवन अनुकरणीय है.
एक प्रसिद्ध कवि की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं...

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

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कहाँ तो तय था चरागां हर एक घर के लिए, कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए.

कहाँ तो तय था चरागां हर एक घर के लिए , कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए. कहाँ तो तय था चरागां हर एक घर के लिए , कहाँ चराग मयस...