आज से लगभग आठ महीने पहले सरकारों के ऊपर एक सर्वे हुआ था , उद्देश्य यह था कि पता किया जाए कि किस देश के नागरिक अपनी सरकार पर सर्वाधिक भरोसा करते हैं. नतीजा मुझे बहुत चौंकाने वाला लगा. हिन्दुस्तान लिस्ट में टॉप पर था. बहुत से विकसित देशों का नाम लिस्ट में बहुत बाद में था.
हर पांच साल बाद जब प्रधानमंत्री चुन कर आता है तो देश कि जनता को एक विश्वास होता है कि सरकार की टू डू लिस्ट में हमारे लिए भी कुछ होगा. देश बदलेगा, अच्छे दिन आयेंगे, आम आदमी को खास होने की अनुभूति होगी किन्तु अंततः जनता को मिलता सिर्फ जुमला ही है. तक़रीबन 70 वर्षों से एक आम हिन्दुस्तानी कि ख्वाहिश है कि कोई सरकार हमारे लिए भी आये . सरकारें आती तो हैं लेकिन इस देश के आम आदमी के लिए क्या लेकर आती हैं? - सिर्फ जातिवाद के नाम पर, महजब के नाम पर यहाँ तक कि पशुओं के नाम पर आम नागरिक के मन में आक्रोश पैदा करने का जहर ! फिर भी भारतीय लोगों का अपनी सरकार पर इतना भरोसा आश्चर्यजनक ही है .
यह आंकड़ा या कह लें कि सर्वे का नतीजा सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर क्या कारण है कि आम आदमी को मूलभूत सुविधाएँ ना मिल पाने के बावजूद भी सरकार पर इतना पुख्ता भरोसा है .
मुख्य रूप से मुझे इसके दो करण नजर आते हैं . पहला ये कि हिन्दुस्तान के आम नागरिक को हिन्दू-मुस्लिम, गाय-गोबर, जातिवाद, सामाजिक भेद-भाव, स्त्री-पुरुष भेद-भाव, जैसे मुद्दों पर इतना उलझा दिया गया है कि उसको इसी में मजा आने लगा है. मारकाट मची है, सोशल मीडिया पर गंध फैलाया जा रहा है, कूड़ा फैलाया जा रहा है.
दूसरा करण यह हो सकता है कि सरकारें लोगों को सपने कि दुनिया में ही जीने का हुनर सिखाने में कामयाब हो रही हैं. इसके कुछ नमूने मैं आपको बताता हूँ .
भाजपा की सरकार आते ही स्वच्छ भारत अभियान का कैंपेन जोरों-शोरों से चलता है, पीएम विदेशों तक इस बात का डंका बजाकर आते हैं, भारतीय नोटों पर भी गाँधी जी कि फोटो पर स्वच्छ भारत का प्रचार-प्रसार हो रहा है, लेकिन आप सड़कों पर निकलिए, गलियों से गुजरिए या किसी नदी के घाट पर चले जाइये, स्वच्छ भारत की सच्चाई से रूबरू हो जाएंगे.
दूसरा नमूना देखिये -
प्रधानमंत्री फेसबुक के सीईओ मार्क से मिलते हैं, फोटो खिंचाते हैं, खबर फ़ैल जाती है सोशल मीडिया पर मोदी जी की जय - जय होने लगती है, युवक-युवतियां खुश हो जाते है कि हमारा 'प्रधानसेवक' हमारी खातिर जॉब मार्किट तैयार करने गया है ,लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता . इस पूरे मिलाप में प्रधानमंत्री को फोटो अपार्चुनिटी मिलती है और मार्क जुकरबर्ग को बिज़नस डील! क्या पता किसी को हमें भरमाने के लिए लिए हमारा पर्सनल डेटा भी सुपुर्द कर दिया गया हो .हमें क्या मिला ?
इस देश कि लगभग 60 प्रतिशत आबादी किसानो की है, सरकारें किसानो के लिए क्या कर रही हैं ?
किसानो कि बात में मैं उद्योगपतियों को शामिल करके करना चाहता हूँ . इस सम्बन्ध में बात क़र्ज़ की कर लेते हैं . किसानो के पास सरकार के कर्जे कि तुलना में उद्योगपतियों का कर्जा कई गुना है. सुप्रीम कोर्ट सरकार से कई बार यह कह चुकी है कि आप सबसे अमीर भारतीयों कि लिस्ट को सार्वजनिक करिए. सरकार को ऐसा करने से कौन रोक रहा है.
दूसरी तरफ यदि एक किसान अपने गुज़ारे के लिए, किसानी के लिए छोटी सी राशि लोन ले लेता है को सरकार के नुमाइन्दे उसे परेशान कर देते हैं .
ये कैसी दोहरी मानसिकता है कि एक तरफ उद्द्योगपति ऋण लेकर घी पी रहा है और अन्नदाता को शुद्ध पानी तक उपलब्ध नहीं.
जिस राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर जातिवाद बैठाया गया हो, जहाँ युवाओं को रोजगार देने को लेकर पकौड़े,तबेले और पान की दुकान खोलकर बैठने की हिदायत दी जा रही हो, जहाँ उद्द्योगपतियों की लूट से किसानो की जमीने दरक रही हों, जहाँ एक-दूसरे के धर्म को लेकर नफरत का ज़हर इतना घुल चुका हो कि मासूमों संग हुए नृशंश कुकृत्यों के बाद उत्पन्न जन आक्रोश के सहारे पूरी मानवता को ताख पर रखकर सरकारें बिना डरे अपना अभेद्य राजनैतिक किला तैयार करने की कवायद में लगी रहें व राष्ट्रवाद का दम्भ भरने वाले कुछ उत्पाती प्रवृत्ति के शैतान एक-दूसरे के प्रति इतने हैवान हो जाएँ की सभी मान-मर्यादाओं को तार -तार कर इंसानियत के सारे पैमानों को तोड़ने पर आमादा हो जाएँ , उस राष्ट्र के रहनुमाओं से देश व समाज निर्माण की क्या अपेक्षा की जाए ?
बातें बहुत सी हैं कहने को... किन्तु सिर्फ इतना कहकर समाप्त करूँगा कि जो सरकार किसानो कि आत्महत्याओं की जवाबदेह नहीं है, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में समर्थ नहीं है, शुद्ध पानी उपलब्ध करवा पाने में नाकाम है, रोजगार दे पाने में असमर्थ है और जाति-धर्म के नाम पर नागरिकों में जहर घोल कर अपना उल्लू सीधा करने के षड्यंत्र में संलिप्त है उस सरकार में लोगों का इतना भरोसा कि वो विश्व की भरोसेमंद सरकारों कि लिस्ट में टॉप कर ले अपने आप में एक घोर आश्चर्य ही है .

Nice Narration
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